Saturday, April 23, 2022

गंगा की वेदना - हिंदी कविता

गंगा की वेदना

गंगा की वेदना

दया तुझमें, कृपा मुझमेंमाता-पिता तू ही मेरी,

मेरा मजहबमेरा सरहदहैं जात तू ही मेरी।

इस ज़मीन से आसमान तक

फैली विशाल धारा तेरी

थकती नहीरूकती नही ,

बहती रेहती गंगा मेरी।।


भगीरथी के बुलाने पर धरती पर पधारी है,

जन-जीवन संवारकरधरती पवित्र बनादी 

कही गंगाकहीं तीरणी,

कहीं जटाशंकरी कहलाती हैं,

हर दिशा से 'नमामि गंगेकी ध्वनि ही आती है।।

पर है दुविधा केसी ,कैसी विडम्बना देखों,

गंगा रो-रो कर बचाव के लिए बुलाती है।

कूड़ा -कचरागंदगी सारी गंगा में बहाते हम,

व्रतपर्वो पर उसी गंगा नदी में नहाते हम।।

बोली गंगाबस बहोत हुआ,

अत्याचार नही सहा जाता,

इस तरहदूषित-प्रदूषित,

इस धरती पर नही रहा जाता।

यदि नहीं सुधरे तुमतो स्वर्ग लौट जाऊंगी बंदे,

फिर पुकारते रेहना तुमहर-हर गंगेनमामि गंगे।।

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