गंगा की वेदना
दया तुझमें, कृपा मुझमें, माता-पिता तू ही मेरी,
मेरा मजहब, मेरा सरहद, हैं जात तू ही मेरी।
इस ज़मीन से आसमान तक
फैली विशाल धारा तेरी
थकती नही, रूकती नही ,
बहती रेहती गंगा मेरी।।
भगीरथी के बुलाने पर धरती पर पधारी है,
जन-जीवन संवारकर, धरती पवित्र बनादी
कही गंगा, कहीं तीरणी,
कहीं जटाशंकरी कहलाती हैं,
हर दिशा से 'नमामि गंगे' की ध्वनि ही आती है।।
पर है दुविधा केसी ,कैसी विडम्बना देखों,
गंगा रो-रो कर बचाव के लिए बुलाती है।
कूड़ा -कचरा, गंदगी सारी गंगा में बहाते हम,
व्रत- पर्वो पर उसी गंगा नदी में नहाते हम।।
बोली गंगा, बस बहोत हुआ,
अत्याचार नही सहा जाता,
इस तरह, दूषित-प्रदूषित,
इस धरती पर नही रहा जाता।
यदि नहीं सुधरे तुम, तो स्वर्ग लौट जाऊंगी बंदे,
फिर पुकारते रेहना तुम, हर-हर गंगे, नमामि गंगे।।
Good👏👏👏👏
ReplyDeleteExcellent 👌👌
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